गीता प्रेस, गोरखपुर >> दैनिक कल्याण सूत्र दैनिक कल्याण सूत्रहनुमानप्रसाद पोद्दार
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प्रस्तुत है दैनिक कल्याण सूत्र.....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
निवेदन
दिन आता है और चला जाता है और यों अनायास ही उमर के दिन व्यर्थ पूरे रहते
हैं तथा मनुष्य मृत्यु के समीप पहुँच जाता है। दिन में क्या किया, क्या
करना चाहिये, इसको मनुष्य नहीं सोचता; यही उसका प्रमाद है। मनुष्य इस
प्रमाद से बचे, वह प्रतिदिन अपने कर्तव्य को सोचे, अपना कल्याण किस बात
में है, इस पर विचार करे और विचारी हुई बात का दिनभर मनन करके उसे जीवनमें
उतार ले तो उसका जीवन व्यर्थ नहीं जाता, वरन उसका एक-एक दिन उसकी उन्नति
में सहायक होता है। इसी उद्देश्य से अंग्रेजी महीनों की तारीख के अनुसार
प्रतिदिन सोचने-विचारने के लिये इस पुस्तिका में कुछ वाक्य दिये गये हैं।
वाक्यों का आधार भागवत-जीवन महात्मा पुरुषों के पवित्र विचार हैं। निवेदन
है कि इन्हें प्रतिदिन पढ़कर तथा यथासाध्य जीवन में उतारकर सभी
पाठक-पाठिकगण समुचित लाभ उठावें।
हनुमान प्रसाद पोद्दार
दैनिक कल्याण-सूत्र
जनवरी
1 जनवरी—नित्य प्रेमपूर्वक श्रीभगवान् का स्मरण करो। इससे
तुम्हें
सदा शुभ शकुन होंगे, तुम्हारा सब प्रकार से मंगल होगा और आदि, मध्य तथा
परिणाममें सब सब कल्याण होगा।
तुलसी सहित स्नेह नित, सुमिरहु सीताराम।
सगुन सुमंगल सुभ सदा, आदि मध्य परिनाम।।
सगुन सुमंगल सुभ सदा, आदि मध्य परिनाम।।
2 जनवरी—यह मनुष्य शरीररूपी सुन्दर खेत बड़े पुण्य से मिला है,
इसमें रामनामकी खेती करो; अर्थात् नामरूपी बीज बोकर उन्हें प्रेमाश्रुओं
के जल से निरन्तर सींचते रहो। ऐसा करने से रोमाञ्चकारी अंकुर प्रकट होंगे
और बहुत जल्दी आनन्दकी खेती लहलहा उठेगी।
बीज राम गुन गन, नयन जल, अंकुर पुलकालि।
सुकृती सुतन सुखेत बर, बिलसत तुलसी सालि।।
सुकृती सुतन सुखेत बर, बिलसत तुलसी सालि।।
3 जनवरी—रामराज्य कहीं चला नहीं गया है, न श्रीराम ही कहीं चले
गये
हैं। आज भी सर्वत्र उन्हीं का राज्य है वे ही घट-घटमें रम रहे हैं।
आवश्यकता है चित्त रूपी चकोर को उनके मुखचन्द्रकी ओर लगाये रखने की। फिर
तुम सदा अपने को उन्हीं की छत्रछाया में पाओगे, तुम्हारे सभी कार्य शुभ हो
जायेंगे और यह कलियुग भी तुम्हारे लिये अत्यन्त सुखगदायी हो जायेगा।
रामचंद्र मुख चंद्रमा, चित चकोर जब होइ।
राम राज सब काज सुभ, समय सुहावन सोइ।।
राम राज सब काज सुभ, समय सुहावन सोइ।।
4 जनवरी—गंगातट पर रहकर गंगा जल का पान करो और भगवान् का नाम
रटते
रहो। कलियुग में पाखण्ड और पापों की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाने के कारण
मनुष्य के निस्तार के केवल ये दो ही उपाय रह गये हैं।
कलि पाषंड प्रचार, प्रबल पाप पाँवर पतित।
तुलसी उभय अधार, राम नाम सुरसरि सलिल।।
तुलसी उभय अधार, राम नाम सुरसरि सलिल।।
5 जनवरी—श्रीरामगुनरूपी अग्नि को सदा प्रज्वलित रखो, फिर
कलियुगरूपी
जाड़ा तुम्हारा कुछ नहीं कर सकेगा। कुपथ, कुतर्क, कुचाल तथा कपट, दम्भ एवं
पाखण्ड ये सब उस आग में जलकर भस्म हो जायँगे।
कुपथ कुतरक कुचालि, कलि कपट दंभ पाषंड।
दहन राम गुन ग्राम जिमि, इंधन अनल प्रचंड।।
दहन राम गुन ग्राम जिमि, इंधन अनल प्रचंड।।
6 जनवरी—धर्म के चार चरण हैं—सत्य, दया, तप और दान।
इनमें से
कलियुग में दान ही प्रधान है। जिस किसी प्रकार दान देने से मनुष्य का
कल्याण होता है। इसलिये अपनी शक्ति के अनुसार दान देते रहो।
प्रगट चारि पद धर्म के, कलि महूँ एक प्रधान।
जेन केन बिधि दीन्हें, दान, करइ कल्यान।।
जेन केन बिधि दीन्हें, दान, करइ कल्यान।।
7 जनवरी—निन्दा तथा सब प्रकार के कष्टों को सहकर एवं अन्याय और
अपमान को भी अंगीकार करके अपने धर्म को न छोड़ो। अच्छे पुरुष ऐसी बात केवल
कह ही नहीं गये हैं, बल्कि करके भी दिखला गये हैं।
सहि कुबोल साँसति सकल, अँगइ अनट अपमान।
तुलसी धरम न परिहरिअ, कहि करि गये सुजान।।
तुलसी धरम न परिहरिअ, कहि करि गये सुजान।।
8 जनवरी—जिनका हृदय युवतियों के कटाक्षरूपी बाणसे न बिंधा हो और
जो
संसार के कठिन मोहपाश में न बंधे हों, ऐसे महापुरुषों-को संसार के थपेड़ों
से त्राण पाने के लिये अपना कवच बना लो। फिर देखोगे कि यह संसार तुम्हें
भयभीत न कर सकेगा।
छिद्यो न तरुनि कटाच्छ सर, करेउ न कठिन सनेहु।
तुलसी तिन की देह को, जगत कवच करि लेहु।।
तुलसी तिन की देह को, जगत कवच करि लेहु।।
9 जनवरी—वचन सदा ऐसे बोलो जो सुनने में मधुर और परिणाममें
हितभरे
हों। क्रोध से भरे कटु वचन बोलनेकी अपेक्षा तो तलवार को म्यान से बाहर
निकालना कहीं अच्छा है।
रोष न रसना खोलिऐ, बरु खोलिअ तरवारि।
सुनत मधुर, परिनाम हित, बोलिअ बचन बिचारि।।
सुनत मधुर, परिनाम हित, बोलिअ बचन बिचारि।।
10 जनवरी—यदि किसी के मन से वैरको जड़से निकाल देना चाहते हो तो
उससे हितभरे वचन कहो। यदि दूसरे का प्रेम प्राप्त करना चाहते हो तो उसकी
सेवा करो और यदि अपना कल्याण चाहते हो तो सबसे विनयपूर्वक सम्भाषण करो।
बैर मूलहर हित बचन, प्रेममूल उपाकर।
दो हा सुभ संदोह सो, तुलसी किएँ बिचार।।
दो हा सुभ संदोह सो, तुलसी किएँ बिचार।।
11 जनवरी—याद रखो—परमार्थ-पथके पथिक के लिये झगड़ा
करने का
अपेक्षा समझौता—मेल कर लेना अच्छा है; दूसरे को
जीतने—नीचा
दिखाने की अपेक्षा स्वयं हार जाना अच्छा है दूसरे को धोखा देने की अपेक्षा
स्वयं धोखा खाना अच्छा है।
जूझे तें भल बूझिबो, भली जीत तें हार।
डहके तें डहकाइबो, भलो जो करिए बिचार।।
डहके तें डहकाइबो, भलो जो करिए बिचार।।
12 जनवरी—किसी को कटु वचन कहकर दबाने की चेष्टा न करो, उपकार के
द्वारा उसे वश में करो। वाग्युद्ध में दूसरे से हार जाना ही हजार बार
जीतने के समान है और जीतने में ही हार है।
बोल न मोटे मारिऐ, मोटी रोटी मारु।
जीति सहस सम हारिबो, जीते हारि निहारु।।
जीति सहस सम हारिबो, जीते हारि निहारु।।
13 जनवरी—यदि अज्ञानरूपी अन्धकार का नाश चाहते हो तो हृदय में
भगवद्भजनरूपी सूर्य को ला बिठाओ। बिना सूर्य का प्रकाश हुए जिस प्रकार
रात्रिके अन्धकार का नाश किसी भी उपाय से नहीं होता, उसी प्रकार बिना
भगवत्भजन के अज्ञान का नाश होना असम्भव है।
राकापति षोड़स उअहिं, तारा गन समुदाइ।
सकल गिरिन्ह दव लाइअ, बिनु रबि राति न जाइ।।
सकल गिरिन्ह दव लाइअ, बिनु रबि राति न जाइ।।
14 जनवरी=ब्रह्माकी सृष्टि में गुण और दोष दोनों भरे हैं। तुम्हारा काम है
नीर-क्षीर-विवेकी हंस की भाँति दोषों का त्याग करके केवल गुणों को ग्रहण
करना। ऐसा करने से से तुम दोषों से सर्वथा छूटकर भगवान् के परमपद के
अधिकारी हो जाओगे।
जड़ चेतन गुन दोषमय, बिस्व कीन्ह करतार।
संत हंस गुन गहहिं पय, परहरि बारि बिकार।।
संत हंस गुन गहहिं पय, परहरि बारि बिकार।।
15 जनवरी—सत्पुरुषों का संग मोक्षकी ओर ले जानेवाला है और कामी
पुरुषों का संग आवागमन की ओर। वेद-पुराण, साधु-संत, पण्डित-ज्ञानी सभी एक
स्वर से ऐसा कहते हैं। यदि मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होना चाहते हो तो
विषयी पुरुषों का संग त्यागकर सत्पुरुषों का संग करो।
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